वन्दे मातरम् भर प्रेम - अश्रु नैनों में , दिल में सत्कार , हो नतमस्तक , करता हूँ नमन तुम्हें मैं मेरी भारत माँ आज भोर के उज्ज्वल पन्नों में सूरज की स्वर्णिम किरणों से सुरों में ढालूँगा राग मैं तेरी महिमा का आज बोऊंगा पुष्प-बीज मुहब्बत के अनेक मैं तेरे हर उपवन में और सींचूँगा ले जल गंगा - जमुना से लगाऊँगा पेड़ वृक्ष ऊंचे व हरे-भरे सहलाने को तेरा सुंदर वदन शीतल वायू के हर मृदु चुंबन से करूंगा विनती हिम-शिखाओं से कि रखें तेरा आँचल बेदाग नहला के सदा नित अपने धवल हाथों से कहूँगा सतलुज , ब्यास , कावेरी को कि रखें तेरी सुंदर काया कोमल निर्मल अपने जीवनदायी जल से बोलूँगा सूरज , चाँद-तारों को भी कि करते रहें धूप , चाँदनी की आँख-मिचोनी तुमसे बहलाने तेरा मन करूंगा आग्रह विशाल हिमालय से कि आने न पाये कोई दुश्मन , सीना तान रहना खड़े सदा प्रहरी बन कहूँगा पहली सूर्य किरण को धीरे से झाँके तेरी ओर , सपनों कि दुनिया में सोने दे तुम्हें कुछ पल और कोयल को कहूँगा कि खिड़की पर बैठ सुनाये अपना कुहूं-कुहूँ राग-भैरव जब भी आने को हो भोर कहूँगा सागर को भी कि
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Climate change Armageddon: letter to CM Sukhu ji Respected Chief Minister Shri Sukhu ji, Namaskar. I am aware that like my earlier one of 14 October ‘23 imploring you for a total shift to “Evergreen Himachal of smiling Himalayas”, this communication too is destined to find no audience with you. However, as a deeply worried and anxious in-love-with-Himachal, fellow Himachali – though ordinary – I feel impelled to keep shouting and ringing the alarm bells of climate change that is now so visibly and tangibly upon us. Like a rapacious Armageddon, it is running amuck– out to ravage and destroy all that the bountiful Mother Nature has bestowed on our hill state with such generous abundance. I hesitate to sound like a doomsayer akin to Cassandra. But I must share what I witnessed a few weeks ago. In early June when sun blazed like a malevolent orb, I embarked on a short drive from my Palampur town towards Dharmshala. The sight that greeted my heat-weary eyes was nothing short of ghastly. M