In conversation with Bharat Mata Loud thunderclaps of ‘Elections ‘24’ awoke me from sleep with a start last night. Groggy and in a state of dreamy half-sleep, I was visited upon by, who else, but our Bharat Mata (henceforth BM). She was dressed in a tricolour of our national flag looking proud but forlorn, sad and weary– her high and wide forehead creased by ripples of worry. I bowed to her with deep love and respect and sought her ashirwad to help me become her true son who would guard her honour and adhere to the dharma of ahimsa and bhayichaara. I also sang Gandhiji’s favourite bhajan: “Vaishnav jan to tene kahiye...” and Bhimsen Joshi’s soulful ‘Mile sur mera tumhara…” to cheer her up. Then we began talking. Here is how our conversation ran: Me: Why are you awake so late in the night our revered Bharat Mata? BM: Son, like you, I was also disturbed by this cacophony and claptrap of ‘Elections ‘24’: hate speeches, uncouth language, undignified barks at opponents, outrageous lie
Posts
Showing posts from April, 2024
- Get link
- X
- Other Apps
नदिया की आवाज़ भोर जब निद्रा त्याग लेती है अंतिम अंगड़ाई , मैं निकल पड़ता हूँ सूनी सी राह मेरी मनभाई सिमट रही होती रैना जब व चाँद सितारे ओझल , देख जगते सूरज की आँख- सुर्ख , गर्मायी श्यामल पर्वत भी जब लगता तकने पूरव को ; लगते पेड़ झूमने , सुन भागती रात की आहट और निंदिया रानी कहती: “अब आऊँगी कल , ले पिटारी सपनों की- कुछ मीठे , कुछ नटखट I” सन्नाटे की पसरी इस झीनी चादर को चीरती तो बस कुत्ते की भौं और अपने ही कदमों की आवाज़ कहीं सीधी डगर , कहीं मोड़ - जैसे जीवन में - फिर वह पथ , जहां नदिया भोर का नित करती आगाज़ जहां देवदार , तो चील कहीं , देख मुझे , ले भीनी मुस्कान , लगते मेरी जग-भटकी , रूठी रूह को ब हलाने और दूर उधर से बहती नदिया कहती: “एक कान इधर भी , हैं मेरे दामन में भी जिंदा बहुत से अफसाने I ” * नदिया की साएं-साएं कभी लगती मुझको जैसे शिशु-प्रेम से भरी सुना रही हो मुझे लोरी , मीठी सी , अनुपम या दूर भगाने मेरे अंधे मन क