अनुरोध: जिंदगी से
क्यों मुट्ठी से सरकते बालू सी फिसली जाती है ‘री जिंदगी, जरा रुक तो,
अब जाना ही है;
होगी दस्तक तो ले जाना खुशी मन उस अनजाने आखिरी गांव
एक हाँफता
राही हूँ ,
थकी-हारी है रूह,
एक
पल बैठ मूंदने दे आँख तो,
माँ की शीतल गोदी
सी, देख है पास बुलाती उस हरित
पीपल की सुखद छांव I
रोक ले ‘री
भागते इस पगले समय-रथ को बना के कोई चतुर सा बहाना,
सोये सपनों,
अवाक
अरमानों की सुनने तो दे एक-आध, मीठी-मधुर सी धुन
बगिया में तितलियाँ देख कैसे सुना रही हैं गुलों को सुरीले किसी इश्क़ का तराना
आ बैठ ले तू भी;
तनिक मुसका, और झूम झूम दो बोल
अरी, ले मुझ संग सुन I
ढलता सूरज कामातुर,
कैसे
है शर्म से सुर्खाया देख- बतियाते हैं उस से,
आ,
सुनते हैं नभ के
राज कुँवर से प्रेम का अफसाना, दूर
बैठ किसी दरिया के छोर
स्याह रेशम पौशाक पहन शहजादी शाम भी देख उधर बुला रही है किसे भला ,
देख, है कैसे
मुस्काता, तनिक शरमाता, उसका प्रेमी चाँद उधर, पूरव की ओर I
दुनिया के झमेलों,
झगड़ों
के मकड़जाल में क्या रहे हम फंसे ऐ जिंदगी,
तू बस एक झोंका सा बन आई और हमसे दूर कहीं सरपट सरक गयी?
पगली,
अभी
तो है जाना कि तू है बस प्यार का सागर, करने
दे लहरों को बंदगी
खेने दे किश्ती,
पीने दे घूंट नशीले,
लिखने दे कुछ पन्ने प्रेम के-
सुरीले, कालजयीI
कभी मुस्कान,
तो कभी नम आँखों से अभी करने दे उन बीते
दिनों की याद,
जब पोता-पोती,
दोहता-दोहती का बन घोड़ा, भूल जाते थे सब गम,
सब दर्द
यारों संग बैठ
लगाने दे ठहाके कुछ और उठा कर जाम , तू
सुन तो ले मेरी फरयाद,
छिटकाने दे ‘री
मुझे मुहब्बत की धूप,
देख नफरत की हवाएँ हुई हैं आज कितनी सर्द I
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तू बस नवेली दुल्हन
सी आ, तनिक मुसकाई,
फिर पलटी, गुस्सायी,
और
बस ऐंठ मार खिसक गयी ?
रुक तो,
गाली-गोली
से कितनी लहू-लुहान है देख बिलखती धरती
माँ, आ रोकें हम यह हिंसा-द्वेष की आँधी I
माना कि था निपट अज्ञानी, नहीं आता था ढाई आखर भी प्रेम का, भोहें चढ़ा, तू दूर गली क्यों भटक गयी?
थम जा अभी लड़ने हैं इंसाफ के जंग कई; फैलाते हैं हम आ, अमन के रंग हर घर, हर गाँव, बन प्रेमदूत गांधी I
कहीं लाशें, कफन, खून; कहीं बच्चे जिंदा दफन: यह कैसा मंजर, कैसी दुनिया, कैसे नेता ‘री, यह कैसा है धंधा ?
मांग सूरज से किरण, पंछी से मृदु बोल, फूलों से रंग-महक, लाते हैं खुशनुमा बहार, आ हम दोनों मिल, हर छोर I
सूनी गलियों से गुजर, देख बम्ब-बंदूक,रुन्दे घर, सुन माँ-बच्चों की चीख पुकार हो गया हूँ अब मैं गूंगा, बहरा, अंधा,
लौटा दे मेरे सुर, गाते हैं फिर कबीर-रहीम के मीठे बोल,और हटा मौत का तम, लाते हैं नयी, जगत में स्वर्णिम भोरI
Nice to go through ur latest poem on life which depicts a real journey of life. I have always liked ur style n wonderful command on English n I do hope u would soon reconsider your decision n continue ur writing for ur wellwishers. Good luck.
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