आओ सुनें क्या कौवा बोले
काला कलूटा और बद्सूरत, उस पर असुंदर, बड़ी सी मेरी चोंच, और फिर कर्कश कायं-कायं - भला किसे मैं भाऊँ?
भैया कह लो चाहे मुझे बुरा, पर हूँ मैं सेवक, सफाई-कर्मी भी, बस खा जूठन
व मांस गला-सड़ा, अपनी भूख मिटाऊँ
हाँ मिले प्यार और दाना उम्दा, तो देता
भी हूँ मैं उपहार, निज चोंच भर, और हूँ मैं तेज
दिमाग़- यह भी दूं बतला:
सुना तो होगा ही किस्सा: डाल घड़े में कंकर-पत्थर
बुझाई थी कैसे अपनी प्यास पानी का स्तर ऊपर ला !?
है मेरा परिवार बड़ा– भारत ही नहीं,
यूरोप,
अमरीका,
ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा भी और पूरा एशिया, तथा विशाल अफरीका
बस आप बुलायें कौवा, विदेशी कहें ‘क्रो’,
‘रेवन’,
‘जैक-डा’,
‘रूक’;
छोटा,
कहीं
बड़ा मैं; स्याह काला, तो कहीं मेरा रंग फीका
टहनी तिनका ले, बड़े पेड़ पर बसाऊँ घर,
निभाऊं
आजीवन श्रीमती का साथ, मिल कर करें दोनों अण्डों-चूजों की
खैर-खुराक
पर डांट डपट मुझ ‘कौवे’ को
जग-प्यारी कोयल, अपने भी अण्डों को दे जबरन नीड़ में डाल- देखो है
ना वह कैसी चोर चालाक ?
ना तो हूँ मैं “त्रिकालदर्शी”,
ना मेरी
भोर कि कायं देती मेहमान का कोई संकेत, और क्यूं मैं बैठ भला महिला के सर,
करूं
अशुभ और सुनूं गाली यारो ?
कोरे मिथक हैं सब इस साइंस के युग में, पर हाँ,
हूँ मैं
चुस्त, चालाक, और करोगे दुश्मनी तो, रखता हूँ रंजिश भी,
यह भी
जान लो प्यारो I
*
Amazing!
ReplyDeleteInimitable.
ReplyDeleteBeautiful
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