
अलविदा रुत बरसात देखा है क्या मन की आँख से कभी बरसा की रुत का वह दिलकश नजारा नभ को लपेटे बादल की मटमैली चदरिया , रिमझिम वारिश का संगीत प्यारा गगन और धरती का यह अनोखा मिलन ; बिजली की चमक , बादलों का नगाड़ा पहन हरयाली का पैराहन अनूठा , कुदरत बन गयी हो मानों दो प्रेमियों का अखाड़ा कभी निशा के दामन में छुप , कभी सूरज के मुखड़े पर बिठा के काले बादल का पहरा आकाश आसक्त प्रेमी , धरा नव-प्रेमिका घबराई सहमी- क्या खूब है प्रेम दोनों का गहरा ! पेड़ झुके और गुमसुम , गंभीर पर्वत , पंछी चंचल , सुरीले: देखते ही बनती है यह छटा सुहानी दो आशिकों की मानों यह हो आँख-मिचोनी , यह मदमस्त क्रीड़ा , यह अद्भुत कहानी भोर-बरसात भी है सपने के पन्ने पे लिखी इबादत- कुदरत बन गयी हो जैसे कवि कोई मतवाला पहन उतरे है जब यह मखमल की चुनरिया , चढ़ा हो जिसमें बादल का रंग औ ’ सूरज का उजाला फैला के जब अपना दामन धरा पे , निकल पड़ती है ठुमक ठुमक , हो जैसे एक परी सी दुल्हनिया खिल उठता है मन देख उसको हर शिखा का , हैं पेड़ झूमत...