
वन्दे मातरम् भर प्रेम - अश्रु नैनों में , दिल में सत्कार , हो नतमस्तक , करता हूँ नमन तुम्हें मैं मेरी भारत माँ आज भोर के उज्ज्वल पन्नों में सूरज की स्वर्णिम किरणों से सुरों में ढालूँगा राग मैं तेरी महिमा का आज बोऊंगा पुष्प-बीज मुहब्बत के अनेक मैं तेरे हर उपवन में और सींचूँगा ले जल गंगा - जमुना से लगाऊँगा पेड़ वृक्ष ऊंचे व हरे-भरे सहलाने को तेरा सुंदर वदन शीतल वायू के हर मृदु चुंबन से करूंगा विनती हिम-शिखाओं से कि रखें तेरा आँचल बेदाग नहला के सदा नित अपने धवल हाथों से कहूँगा सतलुज , ब्यास , कावेरी को कि रखें तेरी सुंदर काया कोमल निर्मल अपने जीवनदायी जल से बोलूँगा सूरज , चाँद-तारों को भी कि करते रहें धूप , चाँदनी की आँख-मिचोनी तुमसे बहलाने तेरा मन करूंगा आग्रह विशाल हिमालय से कि आने न पाये कोई दुश्मन , सीना तान रहना खड़े सदा प्रहरी बन कहूँगा पहली सूर्य किरण को धीरे से झाँके तेरी ओर , सपनों कि दुनिय...