
अनुरोध: जिंदगी से क्यों मुट्ठी से सरकते बालू सी फिसली जाती है ‘ री जिंदगी , जरा रुक तो , अब जाना ही है ; होगी दस्तक तो ले जाना खुशी मन उस अनजाने आखिरी गांव एक हाँफता राही हूँ , थकी-हारी है रूह , एक पल बैठ मूंदने दे आँख तो , माँ की शीतल गोदी सी , देख है पास बुलाती उस हरित पीपल की सुखद छांव I ...